सामाजिकता खोता समाज (Paralyzed Society against Women Freedom)
चाहे देश कोई भी हो ......महिलाओ के लिए, ऐसा लगता है समाज की मानसिकता ........को किसी इलाज की ज़रूरत हो
हम बराबरी देने की बात तो करते है ..पर उन्हें बराबर मानते नहीं है लोग ..........इसका उदहारण हमारे देश में आसानी से मिलता है ......चाहे वो लड़कियों की शिक्षा की हो या सही समय पे उनकी शादी की या उनके सपनो की .....
ऐसा लगता है कोई उनसे पूछना नहीं चाहता ......उनकी इच्छा क्या मायने नहीं रखती ....उन्हें इंसान नहीं किसी वास्तु की तरह लोग समझते है ..........
हमारा समाज क्यों न उन्हें आरक्षण या दूसरे और वजह से आगे करने का दिखावा करे ...पर कही न कही वो उससे अपने साथ चलता हुआ नहीं देख सकती ....................हमारे देश में हर मोड़ पे महिलाओ पर लोग अपनी इच्छाये थोपते है .........
ये समाज बस सामाजिक होने का दिखवा भर कर रहा है ...असल में वो महिलाओ के लिए कभी संवेदनसील नहीं रहा .........
लोग आये दिन किसी न किसी रूप में लड़कियों पर होने वाले अत्याचार से रूबरू होते है पर .....किसी बीमार ,लकवे के मरीज की तरह बस देखते है ......विरोध नहीं करते ........
महिलाये भी ...आस पास की महिलाओ पर हो रहे अत्याचार का विरोध नहीं करती ..बल्कि ये सोचती है ...की ये तो उसके साथ हो रहा है मेरे साथ नहीं तो मैं क्यों विरोध करु ...वो ये भूल जाती है की शायद कल उनकी बारी हो ..........
तभी तो महिलाओ की स्थिति सिर्फ कागज पे सुधरी है असल में नहीं ........जब तक लडकिया या महिलाये खुद के लिए आवाज नहीं उठाती ...."इस कलयुग में कोई कृष्णा नहीं आने वाले द्रौपदी को बचाने "इसे समझने की ज़रूरत है "......
हम बराबरी देने की बात तो करते है ..पर उन्हें बराबर मानते नहीं है लोग ..........इसका उदहारण हमारे देश में आसानी से मिलता है ......चाहे वो लड़कियों की शिक्षा की हो या सही समय पे उनकी शादी की या उनके सपनो की .....
ऐसा लगता है कोई उनसे पूछना नहीं चाहता ......उनकी इच्छा क्या मायने नहीं रखती ....उन्हें इंसान नहीं किसी वास्तु की तरह लोग समझते है ..........
हमारा समाज क्यों न उन्हें आरक्षण या दूसरे और वजह से आगे करने का दिखावा करे ...पर कही न कही वो उससे अपने साथ चलता हुआ नहीं देख सकती ....................हमारे देश में हर मोड़ पे महिलाओ पर लोग अपनी इच्छाये थोपते है .........
ये समाज बस सामाजिक होने का दिखवा भर कर रहा है ...असल में वो महिलाओ के लिए कभी संवेदनसील नहीं रहा .........
लोग आये दिन किसी न किसी रूप में लड़कियों पर होने वाले अत्याचार से रूबरू होते है पर .....किसी बीमार ,लकवे के मरीज की तरह बस देखते है ......विरोध नहीं करते ........
महिलाये भी ...आस पास की महिलाओ पर हो रहे अत्याचार का विरोध नहीं करती ..बल्कि ये सोचती है ...की ये तो उसके साथ हो रहा है मेरे साथ नहीं तो मैं क्यों विरोध करु ...वो ये भूल जाती है की शायद कल उनकी बारी हो ..........
तभी तो महिलाओ की स्थिति सिर्फ कागज पे सुधरी है असल में नहीं ........जब तक लडकिया या महिलाये खुद के लिए आवाज नहीं उठाती ...."इस कलयुग में कोई कृष्णा नहीं आने वाले द्रौपदी को बचाने "इसे समझने की ज़रूरत है "......
Crimes Against Women - VAWHelp.org
www.vawhelp.org
Women Trafficking Statistics - Know more - iamnirbhaya.me
www.iamnirbhaya.me
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